हिंदू धर्म में एकादशी व्रतों का विशेष महत्व है, और रंभा एकादशी उनमें से एक अत्यंत पुण्यदायी तिथि मानी जाती है। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है और भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी को समर्पित होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने तथा रंभा एकादशी की पौराणिक कथा का श्रवण करने से पापों का नाश होता है, दुख-दरिद्रता दूर होती है और भक्त को सुख, शांति एवं समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
रंभा एकादशी का महत्व
रंभा एकादशी का उल्लेख स्कंद पुराण और पद्म पुराण जैसे प्रमुख धर्मग्रंथों में मिलता है। इसे करने से मनुष्य यमराज के भय से मुक्त हो जाता है और मृत्यु के बाद उसे वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से केवल आध्यात्मिक लाभ ही नहीं, बल्कि सांसारिक सुख और समृद्धि भी प्राप्त होती है। विशेष रूप से जो व्यक्ति आर्थिक संकट, मानसिक तनाव, पारिवारिक कलह या स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रहे होते हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायक माना गया है।
भक्तों का विश्वास है कि जो भी श्रद्धा और नियम से इस व्रत को करता है, उसके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं। यह व्रत आत्मा की शुद्धि, संयम और भगवान के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
रंभा एकादशी की पौराणिक कथा
प्राचीन काल में चंद्रपुर नामक एक सुंदर नगर था, जो चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित था। इस नगर के राजा मुचुकुंद थे, जो धर्मनिष्ठ और विष्णु भक्त शासक थे। राजा नियमित रूप से एकादशी व्रत रखते थे और अपनी प्रजा को भी इस व्रत का पालन करने के लिए प्रेरित करते थे। उनकी पुत्री चंद्रावती भी अत्यंत सुंदर, बुद्धिमान और धार्मिक प्रवृत्ति की थी।
चंद्रावती का विवाह एक धर्मपरायण राजकुमार शोभन से हुआ था। शोभन भगवान विष्णु में आस्था रखने वाला भक्त था, लेकिन उसका शरीर दुर्बल था और वह लंबे समय तक उपवास नहीं कर सकता था। जब रंभा एकादशी का दिन आया, तो चंद्रावती ने अपने पति से आग्रह किया कि वे व्रत रखें। शोभन ने पत्नी की बात मान ली और व्रत का संकल्प लिया।
शोभन ने पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की और एकादशी व्रत का पालन किया। लेकिन भूख-प्यास के कारण उसकी हालत बिगड़ गई और रात्रि में उसने देह त्याग दी। इस घटना से चंद्रावती अत्यंत दुखी हुई, परंतु उसने अपनी आस्था और भक्ति को कमजोर नहीं होने दिया। उसने पूरे नियम से व्रत को पूर्ण किया और भगवान विष्णु की कृपा की प्रार्थना की।
चंद्रावती की दृढ़ भक्ति और व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने चंद्रावती को दर्शन देते हुए कहा, “हे भक्ते! तुम्हारी भक्ति और व्रत की शक्ति से तुम्हारे पति को वैकुंठ में स्थान प्राप्त हुआ है। तुम्हारा यह पुण्य तुम्हें जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष प्रदान करेगा।”
भगवान विष्णु के आशीर्वाद से चंद्रावती को आध्यात्मिक और भौतिक दोनों ही लाभ प्राप्त हुए। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि रंभा एकादशी का व्रत सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से करने पर मनुष्य के सभी दुखों का अंत होता है और ईश्वर की कृपा से जीवन में शांति एवं मोक्ष की प्राप्ति संभव है।
रंभा एकादशी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और ईश्वर से जुड़ने का एक पावन अवसर है। यह व्रत भक्ति, समर्पण और ईश्वर पर अटूट विश्वास का प्रतीक है, जो भक्तों को संसारिक दुखों से मुक्त करके दिव्यता की ओर अग्रसर करता है।