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बिलासपुर, 13 अक्टूबर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में बिलासपुर जिले के रहंगी ग्राम पंचायत स्थित मुक्तिधाम (अंत्येष्टि स्थल) में फैली अव्यवस्था को लेकर जनहित याचिका के रूप में सोमवार को एक बार फिर सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस अमितेंद्र प्रसाद की डिवीजन बैंच ने इस मामले में सुनवाई करते हुए पूर्व दिए आदेश के अनुपालन के बारे में जानकारी ली।
महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन भारत ने बताया कि मुख्य सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सचिव और कलेक्टर बिलासपुर ने शपथपत्र पेश किया है। इसके अलावा इस संबंध में छत्तीसगढ़ पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग और शहरी विकास विभाग ने 6 अक्टूबर और 8 अक्टूबर 2025 को आदेश जारी किए हैं। न्यायालय के आदेश करते हुए बिलासपुर कलेक्टर ने जानकारी दी कि जिले के रहंगी ग्राम पंचायत स्थित मुक्तिधाम (अंत्येष्टि स्थल) में बैठने के लिए जगह शेड, पीने के पानी और अन्य व्यवस्था कर दी गई है।
इसके अलावा मुक्तिधाम जाने वाले रास्ते के लिए सड़क प्रस्तावित की जा रही है। जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए डिवीजन बैंच ने मुख्य सचिव को सभी जिलों के कलेक्टर और कमिश्नर और नगरीय निकाय के अधिकारियों को शासन के पंचायत एवं ग्रामीण विकास और शहरी विकास विभागों के दोनों आदेशों के पालन के संबंध में परिपालन को पेश करने निर्देश दिया है। वहीं मुख्य सचिव को इस संबंध में विस्तृत जानकारी हलफनामा में पेश करने का आदेश सुनाया है। इस पूरे मामले में अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी।
दरअसल मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा रहंगी ग्राम पंचायत स्थित मुक्तिधाम (अंत्येष्टि स्थल) में एक अंतिम संस्कार में शामिल होने गए थे, जहाँ मुक्तिधाम की स्थिति दयनीय पाई गई। अतः, उक्त स्थिति के कारण मामले का संज्ञान लिया और स्वतः संज्ञान लेकर यह जनहित याचिका दर्ज करना आवश्यक समझते हुए निर्देश दिए। मुख्य न्यायाधीश ने जनहित याचिका में जिक्र किया कि उन्होंने पाया कि उक्त मुक्तिधाम में न्यूनतम सुविधाएँ भी नहीं हैं। कोई चारदीवारी या बाड़ नहीं है,
जिससे यह पहचाना जा सके कि अंतिम संस्कार/दाह संस्कार या दफ़नाने का कार्य किस क्षेत्र या किस स्थान तक किया जा सकता है। यहाँ कोई पहुँच मार्ग नहीं है और यह रास्ता खाइयों से भरा है और इस बरसात के मौसम में यह पानी से भर गया था, जिससे लोगों के लिए अंतिम संस्कार न्यूनतम व्यवस्था भी नहीं मिल रही है। जिस पर हाइकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों में सम्मानजनक मृत्यु और दाह संस्कार का अधिकार शामिल है।
जब कोई व्यक्ति स्वर्ग सिधारता है, तो उसका शरीर सम्मानजनक विदाई का हकदार होता है। शव कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसका अमानवीय तरीके से निपटान किया जा सके। दिवंगत व्यक्ति के साथ भावनाएँ जुड़ी होती हैं और इसलिए, परिवार के सभी सदस्य/रिश्तेदार आदि निश्चित रूप से उन्हें सम्मानजनक तरीके से और शांतिपूर्ण माहौल में अंतिम विदाई देना चाहेंगे।
मुक्तिधाम की दुर्दशा के मामले में हाइकोर्ट ने पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग के सचिव, छत्तीसगढ़ सरकार और जिला मजिस्ट्रेट/कलेक्टर, बिलासपुर को भी निर्देश दिया था। वहीं इस मुद्दे पर सभी प्रशासनिक अधिकारियों को अपने-अपने व्यक्तिगत हलफनामे दाखिल करने और श्मशान घाटों की बेहतरी के संबंध में राज्य के रोडमैप या विजन के बारे में इस न्यायालय को सूचित करने का आदेश दिया। इस मामले को 13 अक्टूबर, 2025 को सोमवार को सुनवाई हुई।
इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने मुख्य सचिव को प्रदेश भर के जिलों में मुक्तिधाम के हालत की जानकारी लेने और सुधार के विषय में अधीनस्थ जिले के अधिकारियों से जानकारी लेकर पेश करने का आदेश दिया है। अगली सुनवाई 8 दिसंबर को तय की है।